गुरु पूर्णिमा कैसे शुरू हुई ?


ॐ जय सच्चिदानंद जी 

ऋषियों और देवताओं ने महर्षि व्यास से अनुरोध किया था कि जिस
तरह सभी देवी-देवताओं की
पूजा के लिए कोई न कोई दिन निर्धारित है उसी तरह
गुरुओं और महापुरुषों की अर्चना के लिए
भी एक दिन निश्चित होना चाहिए। इससे
सभी शिष्य और साधक अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता
दर्शा सकेंगे। इस अनुरोध पर वेद व्यास ने आषाढ़ी
पूर्णिमा के दिन से 'ब्रह्मासूत्र' की रचना शुरू
की और तभी से इस दिन को व्यास पूर्णिमा
या गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा। गुरु वह है, जिसमें
आकर्षण हो, जिसके आभा मंडल में हम स्वयं को खिंचते हुए
महसूस करते हैं। जितना ज्यादा हम गुरु की ओर
आकर्षित होते हैं, उतनी ही ज्यादा
स्वाधीनता हमें मिलती जाती
है। कबीर, नानक, बुद्ध का स्मरण ऐसी
ही विचित्र अनुभूति का अहसास दिलाता है। गुरु के
प्रति समर्पण भाव का मतलब दासता से नहीं, बल्कि
इससे मुक्ति का भाव जागृत होता है। गुरु के मध्यस्थ बनते
ही हम आत्मज्ञान पाने लायक बनते हैं
जय गुरु देव !

ॐ जय सच्चिदानंद जी 


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