गुरु-शिष्य परंपरा


संत कबीर ने गुरु के लिए कहा है कि,
गुरु गोबिन्द दोउ खडे काके लागूँ पाँय,
बलिहारी गुरु आपने गोबिन्द दियो बताय।

इसका मतलब यह है कि गुरु और ईश्वर दोनों साथ
ही खड़े हैं इसलिए पहले किस के पैर छूने हैं
ऐसी दुविधा आए तब पहले गुरु को वंदन करें
क्युंकि उनकी वजह से ही ईश्वर
के दर्शन हुए हैं। उनके बगैर ईश्वर तक पहुँचना
असंभव है।

कबीरजी का एक दूसरा प्रचलित
दोहा है,
कबीरा ते नर अंध है गुरु को कहते और
हरि रूठे गुरु ठौर है गुरु रूठे नही ठौर

यानि की अंधा है वह जो गुरु को
नहीं समझ पाता। अगर ईश्वर नाराज़ हो जाए तो
गुरु बचा सकता है, लेकिन अगर गुरु नाराज़ हो जाए तब कौन
बचाएगा।

गुरु पूर्णिमा कैसे शुरू हुई ?


ॐ जय सच्चिदानंद जी 

ऋषियों और देवताओं ने महर्षि व्यास से अनुरोध किया था कि जिस
तरह सभी देवी-देवताओं की
पूजा के लिए कोई न कोई दिन निर्धारित है उसी तरह
गुरुओं और महापुरुषों की अर्चना के लिए
भी एक दिन निश्चित होना चाहिए। इससे
सभी शिष्य और साधक अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता
दर्शा सकेंगे। इस अनुरोध पर वेद व्यास ने आषाढ़ी
पूर्णिमा के दिन से 'ब्रह्मासूत्र' की रचना शुरू
की और तभी से इस दिन को व्यास पूर्णिमा
या गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा। गुरु वह है, जिसमें
आकर्षण हो, जिसके आभा मंडल में हम स्वयं को खिंचते हुए
महसूस करते हैं। जितना ज्यादा हम गुरु की ओर
आकर्षित होते हैं, उतनी ही ज्यादा
स्वाधीनता हमें मिलती जाती
है। कबीर, नानक, बुद्ध का स्मरण ऐसी
ही विचित्र अनुभूति का अहसास दिलाता है। गुरु के
प्रति समर्पण भाव का मतलब दासता से नहीं, बल्कि
इससे मुक्ति का भाव जागृत होता है। गुरु के मध्यस्थ बनते
ही हम आत्मज्ञान पाने लायक बनते हैं
जय गुरु देव !

ॐ जय सच्चिदानंद जी 


श्री हनुमान चालीसा


दोहा॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल  चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥

॥चौपाई॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा ।
अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥

कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥

सङ्कर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥

लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥

रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥

सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥

तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥

जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥

सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥

आपन तेज सह्मारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥

सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥

चारों जुग परताप तुह्मारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥

साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥

राम रसायन तुह्मरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥

तुह्मरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥

अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥

और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥

सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥

॥दोहा॥

पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥

श्री गणेशजी की आरती


जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ x2

एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी। x2
(माथे पर सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी)
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा
(हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा)
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥ x2

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

अँधे को आँख देत कोढ़िन को काया
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया। x2
'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ x2
(दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी )
(कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी॥)

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

108 Names of Sri Rama


ॐ श्रीरामाय नमः 
ॐ रामभद्राय नमः 
ॐ रामचंद्राय नमः 
ॐ शाश्वताय नमः 
ॐ राजीवलोचनाय नमः 
ॐ श्रीमते नमः 
ॐ राजेंद्राय नमः 
ॐ रघुपुङ्गवाय नमः 
ॐ जानकीवल्लभाय नमः 
ॐ जैत्राय नमः 
ॐ जितामित्राय नमः 
ॐ जनार्दनाय नमः 
ॐ विश्वामित्रप्रियाय नमः 
ॐ दांताय नमः 
ॐ शरणत्राणतत्पराय नमः 
ॐ वालिप्रमथनाय नमः 
ॐ वाग्मिने नमः 
ॐ सत्यवाचे नमः 
ॐ सत्यविक्रमाय नमः 
ॐ सत्यव्रताय नमः 
ॐ व्रतधराय नमः 
ॐ सदाहनुमदाश्रिताय नमः 
ॐ कौसलेयाय नमः 
ॐ खरध्वंसिने नमः 
ॐ विराधवधपंडिताय नमः 
ॐ विभीषणपरित्रात्रे नमः 
ॐ हरकोदण्डखण्डनाय नमः 
ॐ सप्ततालप्रभेत्रे नमः 
ॐ दशग्रीवशिरोहराय नमः 
ॐ जामदग्न्यमहादर्पदलनाय नमः 
ॐ ताटकांतकाय नमः 
ॐ वेदांतसाराय नमः 
ॐ वेदात्मने नमः 
ॐ भवरोगस्य भेषजाय नमः 
ॐ दूषणत्रिशिरोहंत्रे नमः 
ॐ त्रिमूर्तये नमः 
ॐ त्रिगुणात्मकाय नमः 
ॐ त्रिविक्रमाय नमः 
ॐ त्रिलोकात्मने नमः 
ॐ पुण्यचारित्रकीर्तनाय नमः 
ॐ त्रिलोकरक्षकाय नमः 
ॐ धन्विने नमः 
ॐ दंडकारण्यवर्तनाय नमः 
ॐ अहल्याशापविमोचनाय नमः 
ॐ पितृभक्ताय नमः 
ॐ वरप्रदाय नमः 
ॐ जितेंद्रियाय नमः 
ॐ जितक्रोधाय नमः 
ॐ जितमित्राय नमः 
ॐ जगद्गुरवे नमः 
ॐ ऋक्षवानरसङ्घातिने नमः 
ॐ चित्रकूटसमाश्रयाय नमः 
ॐ जयंतत्राणवरदाय नमः 
ॐ सुमित्रापुत्रसेविताय नमः 
ॐ सर्वदेवादिदेवाय नमः 
ॐ मृतवानरजीवनाय नमः 
ॐ मायामारीचहंत्रे नमः 
ॐ महादेवाय नमः 
ॐ महाभुजाय नमः 
ॐ सर्वदेवस्तुताय नमः 
ॐ सौम्याय नमः 
ॐ ब्रह्मण्याय नमः 
ॐ मुनिसंस्तुताय नमः 
ॐ महायोगिने नमः 
ॐ महोदराय नमः 
ॐ सुग्रीवेप्सितराज्यदाय नमः 
ॐ सर्वपुण्याधिकफलाय नमः 
ॐ स्मृतसर्वौघनाशनाय नमः 
ॐ आदिपुरुषाय नमः 
ॐ परमपुरुषाय नमः 
ॐ महापुरुषाय नमः 
ॐ पुण्योदयाय नमः 
ॐ दयासाराय नमः 
ॐ पुराणपुरुषोत्तमाय नमः 
ॐ स्मितवक्त्राय नमः 
ॐ मितभाषिणे नमः 
ॐ पूर्वभाषिणे नमः 
ॐ राघवाय नमः 
ॐ अनंतगुणगंभीराय नमः 
ॐ धीरोदात्तगुणोत्तमाय नमः 
ॐ मायामानुषचारित्राय नमः 
ॐ महादेवादिपूजिताय नमः 
ॐ सेतुकृते नमः 
ॐ जितवाराशये नमः 
ॐ सर्वतीर्थमयाय नमः 
ॐ हरये नमः 
ॐ श्यामाङ्गाय नमः 
ॐ सुंदराय नमः 
ॐ शूराय नमः 
ॐ पीतवाससे नमः 
ॐ धनुर्धराय नमः 
ॐ सर्वयज्ञाधिपाय नमः 
ॐ यज्विने नमः 
ॐ जरामरणवर्जिताय नमः 
ॐ शिवलिङ्गप्रतिष्ठात्रे नमः 
ॐ सर्वापगुणवर्जिताय नमः 
ॐ परमात्मने नमः 
ॐ परब्रह्मणे नमः 
ॐ सच्चिदानंदविग्रहाय नमः 
ॐ परंज्योतिषे नमः 
ॐ परंधाम्ने नमः 
ॐ पराकाशाय नमः 
ॐ परात्पराय नमः 
ॐ परेशाय नमः 
ॐ पारगाय नमः 
ॐ पाराय नमः 
ॐ सर्वदेवात्मकाय नमः 
ॐ परस्मै नमः 
इति श्रीरामाष्टोत्तरशतनामावलिस्समाप्ता 

!!!۞!!! ॥ॐ श्री राम ॥ !!!۞!!! 
!!!۞!!! ॥ॐ श्री हनुमते नमः ॥ !!!۞!!!

हिंदू पत्थर को क्यों पूजते हैं ?


एक बार कृष्ण जी ने पत्थर उठा कर
गोकुल
धाम को प्रलय से बचाया....
एक बार पत्थर ला कर हनुमान जी ने लक्ष्मण जी
के प्राण बचाये....
एक बार हनुमान जी ने पत्थर पर राम नाम
लिख कर समुद्र में तैराये....
रामसेतु बना लंका पहुँचाया....
एक बार पत्थर ने ही हमारा केदार नाथ बचाया....
फ़िर भी तमाम मूर्ख हम से पूछते हैं कि
तुम हिंदू "पत्थर" क्यों पूजते हो....
||जय श्री राम ||


शिव पंचाक्षर स्त्रोत


नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय| 
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥
हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं। हे (तीन नेत्रों वाले) त्रिलोचन आप भष्म से अलंकृत, नित्य (अनादि एवं अनंत) एवं शुद्ध हैं। अम्बर को वस्त्र सामान धारण करने वाले दिग्म्बर शिव, आपके न् अक्षर द्वारा जाने वाले स्वरूप को नमस्कार ।

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय| 
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे "म" काराय नमः शिवायः॥चन्दन से अलंकृत, एवं गंगा की धारा द्वारा शोभायमान नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी महेश्वर आप सदा मन्दार पर्वत एवं बहुदा अन्य स्रोतों से प्राप्त्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं। हे म् स्वरूप धारी शिव, आपको नमन है। 

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय| 
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै "शि" काराय नमः शिवायः॥हे धर्म ध्वज धारी, नीलकण्ठ, शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था। माँ गौरी के कमल मुख को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले शिव, आपको नमस्कार है। 

वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय| 
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै "व" काराय नमः शिवायः॥देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वार पुजित देवाधिदेव! सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र सामन हैं। हे शिव आपके व् अक्षर द्वारा विदित स्वरूप कोअ नमस्कार है। 

यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय| 
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवायः॥
हे यज्ञस्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं। हे दिव्य अम्बर धारी शिव आपके शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को नमस्कारा है। 

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ| 
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य ध्यान करता है वह शिव के पून्य लोक को प्राप्त करता है तथा शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है।

शिव चालीसा


दोहा
जय गणेश गिरिजासुवन मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम देउ अभय वरदान॥
जय गिरिजापति दीनदयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नाग फनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु कि हवे दुलारी। वाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नंदी गणेश सोहैं तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि कौ कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तबहिं दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लव निमेष महं मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। तबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहीं पाई॥
प्रकटे उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ह दया तहं करी सहाई। नीलकंठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हां। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं त्रिपुरारी।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सबके घट वासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावैं। भ्रमत रहौं मोहे चैन न आवैं॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यह अवसर मोहि आन उबारो॥
ले त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहिं आन उबारो॥
मात पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा ही। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करों तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत हैं शम्भु सहाई॥
रनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन की इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। तन नहिं ताके रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुख हरहु हमारी॥
दोहा
नित नेम उठि प्रातः ही पाठ करो चालीस। 
तुम मेरी मनकामना पूर्ण करो जगदीश॥

Shiv Ji Ki Aarti


Om Jai Shiv Omkaara Prabhu Har Shiva Omkara
Bramhavishnu Sadashiv Ardhangi Dhaara
Om Jai Shiv Omkara
Ekaanan Chaturaanan Panchaanan Raje
Hansaanan Garudaasan Vrishvaahan Saaje
Om Jai Shiv Omkara
Do Bhuj Chaar Chaturbhuj Dasbhuj Ati Sohe
Trigun Rup Nirakhata Tribhuvan Jan Mohe
Om Jai Shiv Omkara
Akshamaala Vanamaala Mundamaala Dhaari
Chandan Mrigmad Sohe Bhole Shubhkari
Om Jai Shiv Omkara
Shvetambar Pitambar Baaghambar Ange
Sanakaadik Bramhaadik Bhutaadik Sange
Om Jai Shiv Omkara
Karke Madhy Kamandal Charka Trishuladharta
Jagkarta Jaghrta Jagapaalan Kaarta
Om Jai Shiv Omkara
Bramha Vishnu Sadaashiv Jaanat Aviveka
Pranavaakshar Ke Madhye Ye Tino Ekaa
Om Jai Shiv Omkara
Lakshmi Var Gayatri Paarvati Sange
Ardhaangi Aru Tribhangi Sir Sohat Gange
Om Jai Shiv Omkaara
Kashi Me Vishvanaath Viraaje Nanda Bramhchaari
Nit Uthh Bhog Lagave - Prabhuji Ke Darshan Paave
Om Jai Shiv Omkaara
Trigunaswamiji Ki Aarti Jo Koi Nar Gave
Kahat Shivanand Swami Sukh Sampati Pave
Om Jai Shiv Omkaara
Om Jai Shiv Omkaara Prabhu Har Shiva Omkara
Bramha Vishnu Sada Shiv Ardhangi Dhaara
Om Jai Shiv Omkara

जय श्री राम जय माता सीताजी


राम नाम अति मीठा है, कोई गाके देख ले,
आ जाते हैं राम, कोई बुला के देख ले ॥

मन भगवान का मन्दिर है, यहाँ मैल न आने देना,
हीरा जन्म अनमोल मिला, इसे व्यर्थ गवां न देना,
शीश दिए हरि मिलते हैं, लुटा के देख ले ॥

जिस मन में अभिमान भरा, भगवान कहाँ से आए,
घर में हो अन्धकार भरा, मेहमान कहाँ से आए,
राम नाम की ज्योति हृदय, जला के देख ले ॥

गीध अजामिल गज गणिका ने, ऐसी करी कमाई,
नीच करम को करने वाला, तर गया सदन कसाई,
पत्थर से हरि प्रगटे हैं, प्रगटा के देख ले ॥

आधे नाम पे आ जाते हैं, है कोई बुलाने वाला,
बिक जाते हैं राम, कोई हो मोल चुकाने वाला,
कोई जौहरी आके, मोल लगा के देख ले ॥

ॐ नमः शिवाय का अर्थ


ॐ नमः शिवाय ..ॐ नमः शिवाय ..ॐ नमः शिवाय
ॐ बोलने से मन को शांति मिलती हे...

नमः बोलने से मन को शक्ति मिलती हे !
शिवाय ..बोलने से पापो को मुक्ति मिलती हें ..


भगवान शिवजी और शिव में क्या अंतर है?


कर्तव्य के पथ पर सत्य ही शिव है। लोकमंगल ही शिव है। शिवजी के गले में विषैला सर्प है। वे अपने गले में विष धारण करते हैं। वे सुंदर हैं और माथे पर चंद्रमा और पावन गंगा को धारण किए हुए हैं। अमंगल को सुंदर और शुभ बना देना ही शिवत्व है। समुद्र मंथन में एरावत हाथी, अमृत व हलाहल आदि चौदह रत्न निकले थे। हलाहल को छोड बाकी तेरह रत्नों को सुरों व असुरों ने आपस में बांट लिया था। हलाहल का पान स्वयं भगवान शंकर ने किया। उन्होंने विष को गले में ही रहने दिया, इसलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है। जहर के असर को कम करने के लिए अपने सिर पर चंद्रमा को धारण कर लिया। भगवान शिव ने अपने भक्तों की भलाई के लिए विष का पान किया। शिव कल्याण स्वरूप हैं। सुखदाता हैं। दुख दूर करने वाले हैं। भक्तों को प्राप्त होने वाले हैं। श्रेष्ठ आचरण वाले हैं। संहारकारी हैं। कल्याण के निकेतन हैं। वे प्रकृति और पुरुष के नियंत्रक हैं

Jai Shri Mahakal


जय श्री महाकाल जय श्री गणेश शुभ संध्या मित्रों
तत पुरुषाय विध्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् !

वन्दे देव उमापतिम सुरगुरुं वन्दे जगत् कारणं,वन्दे पन्नग भूषणं मृग्धरम वन्दे पशूनाम्पतिम !

वन्दे सूर्य शशांक वहिनयनम वन्दे मुकुंदप्रियम,वन्दे भक्त जनाश्रयम च वरदम वन्दे शिवम् शंकरं !!

मृत्तुन्जय महाकाल त्राहिमाम शरणागतः , जन्म मृत्यु जरा व्याधि पीड़ितो कर्म बंधनाह !!

आकाशे तारका लिंगम, पाताले हात्केश्वारह मृत्युरर्लोके महाकाले, लिंगम त्रियम नमोस्तुते !

अवन्तिकायाम विहिव्तारम मुक्ति प्रदायनाय च सज्जनाम, अकाल मृत्तुर परिरक्शनाय, वन्दे महाकाल महा सुरेश्वरम !!

ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव वन्दनार्थ मृत्तुर्मुक्षीय मामृतात !!

कर्पूरगौरम करुणावतारम संसारसारं भुजगेंद्रहारम! सदा वसंतम हृदया रविन्दे भवम भवानी सहितं नमामि !!!

जानिए, शिवलिंग का रहस्य...


आमतौर पर शिवलिंग को गलत अर्थों में लिया जाता है, जो कि अनुचित है। वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है।

वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। यही सबका आधार है। बिंदु एवं नाद अर्थात शक्ति और शिव का संयुक्त रूप ही तो शिवलिंग में अवस्थित है। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना की जाती है।

ब्रह्मांड का प्रतीक ज्योतिर्लिंग : शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा की तरह है। यह शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है, कुछ लोग इसे यौनांगों के अर्थ में लेते हैं और उन लोगों ने शिव की इसी रूप में पूजा की और उनके बड़े-बड़े पंथ भी बन गए हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने धर्म को सही अर्थों में नहीं समझा और अपने स्वार्थ के अनुसार धर्म को अपने सांचे में ढाला।

शिवलिंग का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरूप। शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है। वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी ही लिंग है। पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है जैसे- प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, उर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ लिंग आदि। लेकिन बौद्धकाल में धर्म और धर्मग्रंथों के बिगाड़ के चलते लिंग को गलत अर्थों में लिया जाने लगा जो कि आज तक प्रचलन में है।

ज्योतिर्लिंग : ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में पुराणों में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं। वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के 12 खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

आसमानी पत्थर : ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार विक्रम संवत के कुछ सहस्राब्दी पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ। आदिमानव को यह रुद्र (शिव) का आविर्भाव दिखा। जहां-जहां ये पिंड गिरे, वहां-वहां इन पवित्र पिंडों की सुरक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए। इस तरह धरती पर हजारों शिव मंदिरों का निर्माण हो गया। उनमें से प्रमुख थे 108 ज्योतिर्लिंग।

शिव पुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेक उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। कहते हैं कि मक्का का संग-ए-असवद भी आकाश से गिरा था।

हजारों पिंडों में से प्रमुख 12 पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया। हालांकि कुछ ऐसे भी ज्योतिर्लिंग हैं जिनका निर्माण स्वयं भगवान ने किया।

'शिव' का अर्थ है- 'परम कल्याणकारी शुभ' और 'लिंग' का अर्थ है- 'सृजन ज्योति'। वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है। 1- मन, 2- बुद्धि, 3- पांच ज्ञानेन्द्रियां, 4- पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु। भ्रकुटी के बीच स्थित हमारी आत्मा या कहें कि हम स्वयं भी इसी तरह है। बिंदु रूप।

लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं। केवल लिंग की पूजा करने मात्र से समस्त देवी देवताओं की पूजा हो जाती है। लिंग पूजन परमात्मा के प्रमाण स्वरूप सूक्ष्म शरीर का पूजन है।

शिव पुराण में शिवलिंग की पूजा के विषय में जो तथ्य मिलता है वह तथ्य इस कथा से अलग है। शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है। इस पुराण के अनुसार भगवान शिव ही पूर्ण पुरूष और निराकार ब्रह्म हैं। इसी के प्रतीकात्मक रूप में शिव के लिंग की पूजा की जाती है।